आज हम जानेंगे छठ पूजा कितने प्रकार की होती है?, छठ पूजा की पौराणिक कथा क्या है? छठी माई की भक्ति व उपवास रखने से लाभ क्या होते है? पवित्र शास्त्रों में देवी देवताओं की पूजा के बारे में क्या कहा गया है साथ में आपको अहोई माता की भक्ति से जुड़ा अनोखा रहस्य जानने को मिलेगा
वैसे तो भारत में बहुत से पर्व मनाये जाते हैं, उनमें छठ पूजा सूर्य उपासना का एक लोकपर्व है। इन पर्वों से भारत के लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी होती हैं। छठ पूजा एक ऐसा पर्व है, जो मुख्यरूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तरप्रदेश, नेपाल के निवासियों तथा विश्व के अन्य हिस्सों में फैले हुए भारतीय प्रवासियों के द्वारा विश्वभर में मनाया जाता है। यह पर्व शुक्ल पक्ष के छठवें दिन शुरू होने वाले इस पर्व को छठ पूजा, सूर्य षष्ठी और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। दोस्तों आज के इस वीडियो में प्रमाण सहित जानेंगे श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार छठ पूजा क्यों नही है शास्त्रानुकूल साधना।
छठ पूजा के प्रकार
समाज में दो प्रकार के छठ पर्व की मान्यता है, जिसमें एक शक संवत के कैलेंडर के पहले मास के चैत्र में मनाई जाती है जिसे चैती छठ के नाम से जाना जाता है तथा दूसरी कार्तिक मास के दिवाली के छह दिन बाद मनाने की परंपरा है, जिसे कार्तिक छठ के नाम से जाना जाता है। इन चार दिनों में व्रती (उपवास रखने वाले) को कड़े नियमों का पालन करना होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ पूजा
पुराणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत त्रेतायुग में रामायण के दौरान हुई थी जब राम रावण का वध करके सीता को वापस लेकर लौटे थे। तब मुद्गल ऋषि ने राम को सीता के साथ जल में खड़ा होकर सूर्य देवता को जल अर्पण करने की सलाह देकर इस व्रत को कराया तथा जल छिड़ककर सीता जी को पवित्र किया था।
एक कथा यह भी है प्रियव्रत नामक एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। विवाह के कई वर्षों पश्चात भी उनकी रानी मालिनी को कोई सन्तानोत्पत्ति नहीं हुई, राजा ने अपने राजगुरु से सलाह मशवरा किया। उनके राजगुरु ने यज्ञ अनुष्ठान करने की सलाह दी। राजन ने पूरे विधि-विधान से यज्ञ सम्पन्न किया। ऋषि ने रानी मालिनी को खीर खाने के लिए दी, कुछ समय पश्चात रानी गर्भवती हुई।
गर्भधारण की अवधि पूरी होने पर रानी को मृत पुत्र की प्राप्ति हुई, राजा दुःखी मन से अकेले ही अपने मृत पुत्र के शव को लेकर शमशान पहुँचा, पुत्र वियोग में व्याकुल राजा ने आत्महत्या करने की सोची, तभी वहाँ भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और राजा को संतानोत्पत्ति का मार्ग बताते हुए देवी ने अपनी पूजा पूरे विधि-विधान से करने की सलाह देकर संतान प्राप्ति का आश्वासन देकर अंतर्ध्यान हो गई। परंतु आपको बता दें की यह सब लोक मान्यताए है जिनका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है।
कौन है छठी मईया?
लोक मान्यता के अनुसार सृष्टि के मूल की उत्पत्ति के छठे दिन इनके जन्म के कारण इन्हें छठी मईया कहा जाता है। इस घटना के बाद राजा ने वापस अपने महल लौटकर पूरा वृतांत अपनी पत्नी को सुनाया और देवी द्वारा बताये गए नियमों और विधि-विधान से देवी द्वारा बताये गयी तिथि को पूरे अनुष्ठान के साथ छठी मईया की पूजा-अर्चना की। कुछ समय पश्चात रानी ने फिर से गर्भधारण किया। गर्भावधि पूरी होने के पश्चात रानी ने एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया।
राजा के संतान की इच्छा पूरा होने के कारण ही इस पर्व की मान्यता है कि छठी मईया का व्रत पूरे नियम और विधि-विधान से करने पर निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। इसी अवधारणा के कारण छठ व्रत की परम्परा चली आ रही है। लेकिन वास्तव मे यहां किसी को संतान प्राप्ति पिछले संस्कार से ही होती है। इसमें देवी देवता आदि की कोई भूमिका नहीं है।
छठ पूजा पर जानिए यथार्थ ज्ञान के बारे में
छठ पूजा का विधान इतिहास के अलावा हमारे किसी भी धर्म के प्रमाणित पवित्र सद्ग्रंथों गीता, चारों वेद में नहीं हैं, हिन्दू धर्म के पवित्र धर्मग्रन्थ श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में गीता ज्ञानदाता का कहना है कि हे अर्जुन! यह योग (भक्ति) न तो अधिक खाने वाले का और न ही बिल्कुल न खाने वाले का अर्थात् ये भक्ति न ही व्रत रखने वाले, न अधिक सोने वाले की तथा ना अधिक जागने वाले की सफल होती है। इस श्लोक से यह स्पष्ट है कि व्रत रखना पूर्ण रूप से मनमाना आचरण है और श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 अनुसार शास्त्र विरुद्ध मनमाने आचरण से कोई लाभ नहीं होता।
क्या भाग्य से अधिक देवी-देवता दे सकते हैं?
जहाँ तक सवाल है पुत्र प्राप्ति की तो परम संत सतगुरु रामपाल जी महाराज जी हमारे शास्त्रों से प्रमाणित कर बताते हैं कि यहाँ सभी जीव उतना ही पाते हैं, जितना उनकी किस्मत यानि भाग्य में लिखा हुआ है, अगर प्रारब्ध में कोई लेन-देन बाकी नहीं है तो संतान प्राप्ति नहीं होती है। भाग्य से अधिक कोई अगर दे सकता है तो वो पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब हैं। छठ व्रत जैसी मनमानी पूजा को लेकर कबीर परमेश्वर जी ने कहा है:-
आपे लीपे आपे पोते, आपे बनावे होइ |
उसपर बुढिया पोते मांगे, अकल कहां पर खोई ||
छठ पूजा में जिस मानस देव की पुत्री देवसेना का जिक्र है, वो देवी दुर्गा (माया) की ही अंश हैं, माया के बारे में कबीर साहेब जी ने कहा है –
माया काली नागिनी, अपने जाए खात।
कुंडली में छोड़े नहीं, सौ बातों की बात।।
माया स्वयं काल की अर्धांगिनी है जो हम सभी जीवों को इस चौरासी लाख योनियों में फंसाए रखने में काल की मदद करती है। अधिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक “अंध श्रध्दा भक्ति खतरा-ए-जान” अवश्य पढ़ें।
गीता अध्याय न. 16 के मंत्र 24 में गीता ज्ञान दाता ने साफ़-साफ कहा है कि अर्जुन भक्ति करने के लिए शास्त्र ही प्रमाणित हैं अर्थात शास्त्र अनुसार भक्ति ही करनी चाहिए। और गीता अनुसार शास्त्रों के अनुकूल भक्ति तो पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) ही बता सकते हैं।
कौन है पूर्ण व तत्वदर्शी??
वर्तमान के लगभग सभी सुप्रसिद्ध गद्दी नसीन सन्तों का मानना है कि मनुष्य को अपने द्वारा किये गए पापों का फल भोगना ही होगा। प्रारब्ध में किये गए पापों को भोगने के अलावा व्यक्ति के पास और कोई समाधान नहीं है। लेकिन अगर हम अपने सद्ग्रन्थों के संदर्भ से बात करें तो संत रामपाल जी महाराज जी प्रमाण दिखाते हुए बताते हैं कि पवित्र यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13, ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 में वर्णित है कि पूर्ण परमात्मा अपने साधक के घोर से घोर पाप का भी नाश कर उसकी आयु बढ़ा सकता है। जिससे साफ जाहिर है कि अभी के गद्दीधारी इन सभी आदरणीय सन्तों के पास सद्ग्रन्थों के आधार से कोई ज्ञान नहीं है। इस घोर कलियुग में पूरे ब्रह्माण्ड में अगर कोई परमात्मा द्वारा चयनित अधिकारी संत हैं, जो इन सभी शर्तों पर खरे उतरते हों तो वो एकमात्र संत रामपाल जी महाराज जी हैं। जीवन आपका है और बेशक चुनाव भी आपका होना चाहिये।
हम आपको बता दें कि इस पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज ही एक मात्र वो तत्वदर्शी संत हैं, जिन्होंने सभी शास्त्रों के अनुकूल ज्ञान बताया है। इसलिए अपना वक़्त गवाएँ बिना पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लें। जिसकी गवाही सभी धर्म की पवित्र पुस्तकें दे रही हैं।