कविर्देव अपने ज्ञान का दूत बनकर स्वयं ही आता है तथा अपना स्वस्थ ज्ञान (वास्तविक तत्वज्ञान) स्वयं ही कराता है।
Must Know about The God’s Avatar
Avatar- According to Kabir Saheb ji
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है –
शब्द:-
अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया। (टेक)
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।।
मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
‘अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।’
हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
उपरोक्त शब्द में कबीर परमेश्वर कह रहे हैं कि न तो मेरी कोई पत्नी है, न ही मेरा पाँच तत्व (हाड-चाम, लहू अर्थात् नाडि़यों के जोड़-जुगाड़ वाली काया) का शरीर है, मैं स्वयंभू हूँ तथा काशी के लहरतारा (lahartara) नामक तालाब के जल में कमल के फूल पर स्वयं प्रकट होकर बालक रूप बनाया था। वहाँ से मुझे नीरू नामक जुलाहा उठा कर ले गया था। जो वास्तविक नाम परमेश्वर का अर्थात् मेरा है (वेदों में कविर्देव, गुरु ग्रन्थ साहेब में हक्का कबीर (hakka Kabir) तथा कुरान शरीफ( Quran Sarif) में अल्लाह कबीरन्) वही नाम मेरा है, मैं ऊपर ऋतधाम में रहता हूँ तथा आप का भगवान (God) ज्योति निरंजन (ब्रह्म) भी मेरी पूजा करता है।
इसी का प्रमाण सत्यार्थ प्रकाश सातवें समुल्लास (पृ. 152-153, दीनानगर पंजाब से प्रकाशित) में भी है। स्वामी दयानन्द जी ने यजुर्वेद अध्याय 13 मन्त्र 4 तथा ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मन्त्र 1 का अनुवाद किया है। जिसमें वेदों को बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है (5 = ऋग्वेद मं. 10 सु. 49 मं. 1 तथा 6 = यजुर्वेद अध्याय 13 मं. 4 में) – हे मनुष्यों जो सृष्टी के पूर्व सर्व की उत्पति करता तथा सर्व का स्वामी था, है, आगे भी रहेगा वही सर्व सृष्टी को बनाकर धारण कर रहा है। उस सुख स्वरूप परमात्मा (Parmatma) की भक्ति जैसे हम (ब्रह्म तथा अन्य देव भी उसी की साधना) करते हैं वैसे ही तुम लोग भी करो।
Proof Of Vedas About Avatar
प्रमाण – 1. पवित्र यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 –
समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रामहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।
समिद्धः-अद्य-मनुषः-दुरोणे-देवः-देवान्-यज्-असि- जात-वेदः-आ- च-वह- मित्रामहः-चिकित्वान्-त्वम्-दूतः- कविर्-असि-प्रचेताः।
अनुवाद – (अद्य) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्र विधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, अग्नि जला कर भस्म कर देती है ऐसे साधक का जीवन शास्त्र विरूद्ध साधना नष्ट कर देती है। उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरुष की वास्तविक (यज्) पूजा (असि) है। (आ) दयालु , (मित्रामहः) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा के (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात् यथार्थ भक्ति को (दूतः) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेताः) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर) कबीर (असि) है।
भावार्थ:- जिस समय भक्त समाज को शास्त्राविधी त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्व ज्ञान को प्रकट करता है।
प्रमाण 2. पवित्र सामवेद संख्या 1400 में
संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8 –
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः ।।4।।
पुराम्-भिन्दुः-युवा-कविर्-अमित-औजा-अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य-कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।
शब्दार्थ:- (युवा) पूर्ण समर्थ (कविर्) कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर (अमितऔजा) विशाल शक्ति युक्त अर्थात् सर्व शक्तिमान है (अजायत) तेजपुंज का शरीर मायावयी बनाकर (धर्ता) प्रकट होकर अर्थात् अवतार धारकर (वज्री) अपने सत्यशब्द व सत्यनाम रूपी शास्त्र से (पुराम्) काल-ब्रह्म के पाप रूपी बन्धन रूपी कीले को (भिन्दुः) तोड़ने वाला, टुकड़े-टुकड़े करने वाला (इन्द्रः) सर्व सुखदायक परमेश्वर (विश्वस्य) सर्व जगत के सर्व प्राणियों को (कर्मणः) मनसा वाचा कर्मणा अर्थात् पूर्ण निष्ठा के साथ अनन्य मन से धार्मिक कर्मो द्वारा सत्य भक्ति से (पुरूष्टुतः) स्तुति उपासना करने योग्य है।
{जैसे बच्चा तथा वृद्ध सर्व कार्य करने में समर्थ नहीं होते जवान व्यक्ति सर्व कार्य करने की क्षमता रखता है। ऐसे ही परब्रह्म-ब्रह्म व त्रिलोकिय ब्रह्मा-विष्णु-शिव तथा अन्य देवी-देवताओं को बच्चे तथा वृद्ध समझो इसलिए कबीर परमेश्वर को युवा की उपमा वेद में दी है।
Knowlege About Satlok
साधु के संग साधु होत है, जगत के संते जगत होवै।
साधु के संग परम सुख उपजै, जगत के संग ते जन्म खोवै।।
साधु के संग ते परम पद पाईये, जगत के संग ते दुःख भारी।कहैं कबीर यह संत का शब्द, सुनो रे जीव सब पुरूष नारी।।
भावार्थ:- संत की शरण में आने से जीवन में सुख होता है। परमात्मा का होता है जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है। के साथ रहने से जगत भाव ही रहता है और अनमोल मानुष जन्म नष्ट हो जाता है।
आत्मा और मन को पात्र बनाकर संत गरीबदास जी (Sant Garib Dass ) ने संसार के मानव को समझाया है। कहा है कि ‘‘यह संसार दुःखों का घर है। इससे भिन्न एक और संसार है। जहाँ कोई दुःख नहीं है। वह शाश्वत् स्थान है (सनातन परम धाम, सत्यलोक Satlok) वह सुख सागर है तथा वहाँ का प्रभु (अविनाशी परमेश्वर) भी सुखदायी है जो उस सुख सागर में निवास करता है। सुख सागर अर्थात् अमर लोक की संक्षिप्त परिभाषा बताई है:-
शंखों लहर मेहर की ऊपजैं, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान रूपी नौ मन सूत उलझा हुआ है। एक कि.ग्रा. उलझे हुए सूत को सीधा करने में एक दिन से भी अधिक जुलाहों का लग जाता था। यदि सुलझाते समय धागा टूट जाता तो कपड़े में गाँठ लग जाती। गाँठ-गठीले कपड़े को कोई मोल नहीं लेता था। इसलिए परमेश्वर कबीर जुलाहे (Kabir Saheb) ने जुलाहों का सटीक उदाहरण बताकर समझाया है कि अधिक उलझे हुए सूत को कोई नहीं सुलझाता था। अध्यात्म ज्ञान उसी नौ मन उलझे हुए सूत के समान है जिसको सतगुरू अर्थात् तत्त्वदर्शी संत ऐसा सुलझा देगा जो पुनः नहीं उलझेगा। बिना सुलझे अध्यात्म ज्ञान के आधार से अर्थात् लोकवेद के अनुसार साधना करके स्वर्ग-नरक, चैरासी लाख प्रकार के प्राणियों के जीवन, पृथ्वी (Earth) पर किसी टुकड़े का राज्य, स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया, पुनः फिर जन्म-मरण के चक्र में गिरकर कष्ट पर कष्ट उठाया। परंतु काल ब्रह्म की वेदों में वर्णित विधि अनुसार साधना करने से वह परम शांति तथा सनातन परम धाम प्राप्त नहीं हुआ जो गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है और न ही परमेश्वर का वह परम पद प्राप्त हुआ जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है। काल ब्रह्म की साधना से निम्न लाभ होता रहता है।
Conclusion
कबीर परमेश्वर जी ने सर्व सतग्रंथों की जानकारी पवित्र कबीर सागर में अपनी वाणियों के माध्यम से उजागर किया हुआ है, कबीर साहेब द्वारा वर्णित इन वाणियों के रहस्यों को केवल उन्हीं के कृपा पात्र संत ही सुलझा सकते हैं, आज के लिए केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही वो महापुरुष हैं जो कबीर साहेब जी के कृपा पात्र और उनके अवतार ( Avatar, Dharti par Avatar) हैं, जल्द से जल्द संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेकर अपना तथा अपने परिवार का कल्याण करवायें