सत्य साधना
कबीर परमेश्वर जी ने बताया था कि जिस समय 3400 (चैंतीस सौ) ग्रहण सूर्य के लग चुके होंगे। तब कलयुग का अंत हो जाएगा। कलयुग पयाना यानि प्रस्थान कर जाएगा। कबीर बानी पृष्ठ 137 पर पंक्ति नं. 14 गलत लिखी है। यथार्थ चैपाई इस प्रकार है:-
तेरहवां पंथ चले रजधानी। नौतम सुरति प्रगट ज्ञानी।।
पंक्ति नं. 13 भी गलत लिखी है, ठीक इस प्रकार है:-
संहस्र वर्ष पंथ चले निर्धारा। आगम (भविष्य) सत्य कबीर पोकारा।।
वाणी नं. 12 भी गलत है, ठीक नीचे पढ़ें:-
कलयुग बीते पाँच हजार पाँच सौ पाँचा। तब यह बचन होयगा साचा।।
पंक्ति नं. 15 भी गलत लिखी है, ठीक निम्न है:-
कबीर भक्ति करें सब कोई। सकल सृष्टि प्रवानिक (दीक्षित) होई।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने तीनों चरण कलयुग के बताए हैं। फिर धर्मदास जी से प्रतिज्ञा (सोगंध) दिलाई कि मूल ज्ञान यानि तत्त्वज्ञान तथा मूल शब्द (सार शब्द) किसी को उस समय तक नहीं बताना है, जब तक द्वादश (बारह) पंथ मिट न जाएं। विचार करें बारह पंथ मिटाकर एक पंथ चलाना था, उस समय जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा। कलयुग का वह समय सन् 1997 में है तो इससे पहले यह नाम बताना ही नहीं था तो दामाखेड़ा (छत्तीसगढ़) वाले धर्मदास जी के बिन्द (संतान) गद्दी वालों के पास तो सार शब्द तथा तत्त्वज्ञान है ही नहीं, न तो वे मुक्त कर सकते हैं और न ही मुक्त हो सकते हैं। उसके लिए परमेश्वर कबीर जी ने अनुराग सागर पृष्ठ 140.141 पर स्पष्ट कर दिया है कि हे धर्मदास! तेरी छठी पीढ़ी से यथार्थ प्रथम नाम की साधना भी समाप्त हो जाएगी। काल पंथी टकसारी जो काल के द्वारा चलाए कबीर नाम से चले पंथों में पाँचवां पंथ है, उसकी आरती चैंका तथा नाम दीक्षा प्रारम्भ करेगा जो दामाखेड़ा में वर्तमान में चल रही है। फिर पृष्ठ 137 कबीर बानी पर पंक्ति नं 19 में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि मैंने (कबीर परमेश्वर जी ने) तेतीस अरब ज्ञान बोला है, परंतु तत्त्वज्ञान (मूल ज्ञान) गुप्त रखा है। यह तो उसी समय खोलना है, जब कलयुग का बिचला चरण चलेगा।
तेतीस अरब ज्ञान हम भाखा। मूल ज्ञान गोए हम राखा।।
‘‘काल वाले कबीर पंथ के जीव कहाँ जाऐंगे?‘‘
द्वादश पंथ अंशन के भाई। जीव बोध अपने लोक ले जाई।।
द्वादश पंथ में पुरूष नहीं आवै। जीव अंश में जाई समावै।।
भावार्थ:- बारह पंथ काल अंश के चलेंगे। वे जीवों को गलत ज्ञान देकर अपने-अपने लोकों में ले जाएंगे, सतलोक नहीं जा सकते। यह ऊपर स्पष्ट हो चुका है।
पृष्ठ 138 से 156 तक दामाखेड़ा वालों ने यथार्थ वाणी को घुमाकर मिलावट करके बिगाड़कर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि धर्मदास जी की 42 पीढ़ियों से जीव मुक्त होंगे। वास्तविकता यह है कि परमेश्वर कबीर जी ने बताया था कि तेरी कुल संतान इतनी हो जाएगी यदि तेरी संतान काल जाल में नहीं फंसेगी तो यह सम्भव होगा जो पृष्ठ 138 से 156 तक लिखा है।
विचार करें:- यदि इन पृष्ठों के ज्ञान को सत्य मानें तो पृष्ठ 148 पर पंक्ति नं. 14 में लिखा है कि:-
बीस दिन और वर्ष पचीसा। इतना कुल में चले संदीसा।।
भावार्थ:- प्रत्येक गद्दी वाला 25 वर्ष और 20 दिन तक गद्दी पर रहेगा। विचार करें क्या वर्तमान तक 13 पीढ़ी चल चुकी हैं। इनमें कोई 25 वर्ष 20 दिन गुरू पद पर रहा है? नहीं तो अपने आप वाणी का अर्थ सिद्ध होता है कि यदि काल छठे पीढ़ी वाले को नहीं ठगता तो यह समय सही रहता।
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