भगवान गणेश (Ganesh Ji) एक हिंदू देवता हैं, जिन्हें सभी हिंदू धार्मिक समारोहों की शुरुआत में पूजा जाता है इसलिए उनको आरंभ के देवता की श्रेणी में गिना जाता है। वह अक्षरों के देवता हैं और बौद्धिकता से सम्बन्धित हैं। इसलिए, वह लेखकों, बैंककर्मियों, विद्वानों आदि के रक्षा करने वाले माने जाते हैं। उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ यानी बाधाओं को नाश करने वाला भी कहा जाता है। आगे पढ़ें
Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश कौन हैं?
आइए, हम एक विश्लेषण करते हैं। सर्वप्रथम यह जानते हैं कि भगवान गणेश कौन हैं?
भगवान गणेश भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। वह ’गणेश लोक’ में कैलाश पर्वत पर उनके साथ रहते हैं।
गणेश का अर्थ है ‘गणों का प्रमुख’ (दिव्य प्राणियों की एक सेना) या ‘प्रजा के भगवान’।
भगवान गणेश के 108 नाम हैं। आमतौर पर गणेश को ‘गणपति, गजवक्त्र (जिनका मुख हाथी के समान है), हरिद्रा (सुनहरी त्वचा वाला), गजानन, द्विमुख, विघ्नहर्ता, विघ्नकर्त्ता, विनायक, श्री विघ्नेश्वरय जैसे नामों से अभिवादन किया जाता है।
उन्हें ‘लम्बोदर ’और’ महोदर’ भी कहा जाता है, उनका एक पूरा हाथीदांत है और दूसरा टूटा हुआ है जिसकी वजह से उन्हें ‘एकदंत’ भी कहा जाता है।
भगवान गणेश को चित्र और मूर्तियों में कुछ गोल आकार की मिठाइयाँ पकड़े हुए दिखाया जाता है जिन्हें ‘लड्डू’ / ‘मोदक’ कहा जाता है। शंख, कमल भी गणेश जी हाथों में धारण करते हैं। कुल्हाड़ी गणेश जी का अस्त्र है।
भगवान गणेश का वाहन मूषक है जो प्रतीकात्मक है- आंतरिक अंधकार को समाप्त करने यानी इच्छाओं पर अंकुश लगाने का।
गणेश जी के पिता भगवान शिव हैं (जो त्रिदेवों में से एक हैं), और ‘तमोगुण युक्त’ हैं, अर्थात क्रोध और विनाश के प्रतीक हैं और देवी पार्वती उनकी माता हैं। गणेश जी के बड़े भाई का नाम ‘कार्तिकेय’ है जिन्हें युद्ध का देवता’ माना जाता है और बहन का नाम ‘अशोकसुंदरी’ है।
अशोक सुंदरी का जन्म कैसे हुआ?
पद्म पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती विश्व में सबसे सुंदर उद्यान में जाने के लिए भगवान शिव से कहा। तब भगवान शिव पार्वती को नंदनवन ले गए, वहां माता को कल्पवृक्ष से लगाव हो गया और उन्होंने उस वृक्ष को लेकर कैलाश आ गईं। एक बार भगवान भोलेनाथ तप करने के लिए चले गए। माता अकेली थी। अपने अकेलेपन को दूर करने हेतु पार्वती ने उस कल्प वृक्ष से यह वर मांगा कि उन्हें एक कन्या प्राप्त हो, तब कल्पवृक्ष द्वारा अशोक सुंदरी का जन्म हुआ।
भगवान गणेश विवाहित हैं। उनकी दो पत्नियाँ हैं जिनका नाम ऋद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (आध्यात्मिक शक्ति) हैं और ‘शुभ’ और ‘लाभ’ नाम के दो बेटे हैं, यही कारण है कि ये शब्द अक्सर उनकी मूर्ति के साथ लिखे होते हैं।
गणेश जी की उत्पत्ति कैसे हुई?
Ganesh Chaturthi Special : भगवान गणेश कौन हैं इसके बारे में जान लेने के पश्चात आइए, अब जानते हैं कि भगवान गणेश की उत्त्पत्ति कैसे हुई?
भगवान गणेश का सिर एक हाथी का है। भगवान गणेश जी की उत्त्पत्ति कैसे हुई इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
शिव पुराण’ के अनुसार भगवान शिव के पास बहुत से’ गण ‘थे जो उनके सभी आदेशों का सम्मान करते थे लेकिन देवी पार्वती के पास कोई’ गण ‘नहीं था। इस बात से परेशान होकर, एक बार जब देवी पार्वती जी स्नान कर रही थीं, तब उन्होंने स्नान के दौरान अपने शरीर पर लगे उबटन (विशेष प्रकार का लेप जो शरीर में लगाया जाता है) से एक पुतला बनाया और अपनी शक्ति से, उन्होंने उस मानव आकार वाले पुतले में प्राणों का संचार किया, जिससे एक बालक उत्त्पन्न हुआ। माता पार्वती ने उसे ‘गणेश’ नाम दिया और सख्त आदेश दिया की उनकी मर्ज़ी के बगैर किसी को भी महल में प्रवेश नहीं होने दें।
इस बीच शिव जी हिमालय से तपस्या पूरी करके लौटे और पार्वती जी के महल के अंदर प्रवेश करने का प्रयास किया लेकिन गणेश जी ने अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए शिव जी को महल में प्रवेश करने से मना कर दिया जिससे गणेश जी को शिव जी के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अज्ञानता और क्रोधवश शिव जी ने अपने त्रिशूल से गणेश का वध कर दिया और पार्वती जी के महल में प्रवेश कर गए।
जब पार्वती जी ने देखा कि उनका पुत्र गणेश मर गया है तो उन्होंने इस तथ्य को शिव जी के समक्ष प्रकट किया कि भगवान गणेश की उत्त्पत्ति कैसे हुई? पार्वती जी उग्र हो गईं और उन्होंने काली का रूप धारण कर लिया और घोषणा कर दी कि अगर गणेश का जीवन पुनः बहाल नहीं किया गया तो वह समस्त सृष्टि को नष्ट कर देंगी।
भयभीत भगवान शिव ने गणेश के सिर को वापस न जोड़ पाने की अपनी अक्षमता को स्वीकार किया और बताया कि उनके त्रिशूल का प्रभाव उल्टा नहीं हो सकता। तब, भगवान शिव ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वह उस पहले प्राणी का सिर लेकर आएं जो मार्ग में सबसे पहले अकेला मिले यानी जो अपनी माँ के साथ न हो। ऐसा ही किया गया।
विष्णु जी एक हथिनी के बच्चे का सिर लेकर आए। शिव जी ने वह सिर गणेश के शरीर के ऊपर रख दिया और अपनी शक्ति से गणेश जी को जीवनदान दिया इस प्रकार गणेश ज़िंदा हो गए।
तब गणेश को वहां मौजूद देवताओं द्वारा कई शक्तियों के साथ आशीर्वाद दिया गया था और यह भी कि उन्हें प्रथम पूजा जाएगा। तब से उन्हें ‘गजानन’ और प्रथम पू्ज्यनीय भगवान कहा जाता है। इस प्रकार भगवान गणेश जी को हाथी का सिर प्राप्त हुआ।
शिव जी, भगवान गणेश के मूल मस्तक को पुन:स्थापित नहीं कर सके?
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान शिव, भगवान गणेश के मूल मस्तक को पुन:स्थापित नहीं कर सके क्योंकि उनकी आध्यात्मिक शक्तियां सीमित हैं। गणेश का सिर कट जाने के बाद उसे राख में दबा दिया गया। भगवान शिव के त्रिशूल का प्रभाव पलट नहीं सकता। वह स्वयं के द्वारा किया गया विनाश वापस नहीं कर सकते। यह प्रकृति का नियम है। ये त्रिमूर्ति ईश्वर, सर्वोच्च भगवान (आदि गणेश) के कानून से बंधे हैं। वे केवल निर्धारित कार्य ही पूर्ण कर सकते हैं। वे कुछ भी बदलाव नहीं कर सकते। श्रीमद् देवी भागवत दुर्गा पुराण इसका साक्ष्य प्रदान करती है।
दोनों भगवान हैं लेकिन न तो भगवान शिव और न ही भगवान गणेश यह पहचान सके कि गणेश और भगवान शिव का आपस में क्या संबंध है?
भगवान शिव को मृत्युंजय, कालिंजय, त्रिकालदर्शी, सर्वोच्च भगवान कहा जाता है। वह क्यों नहीं पहचान सके कि गणेश को देवी पार्वती ने बनाया है और वह उनका पुत्र है?
भगवान होने के बावजूद शिव ने अपने पुत्र गणेश को मार डाला?
भगवान शिव और भगवान विष्णु की शक्तियाँ सीमित हैं? तमोगुण-शिव जी, सतोगुण-विष्णु जी और यहाँ तक कि देवी पार्वती-शक्ति का प्रतीक है जो सृष्टि को नष्ट भी कर सकती है मगर इनमें से कोई भी गणेश के मूल मस्तक को पुन:स्थापित नहीं कर सके और उन्हें एक हाथी का सिर लगाना पड़ा।
यह स्पष्ट है कि भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी पार्वती और वहां मौजूद अन्य सभी देवता अक्षम थे। उनके पास सीमित शक्तियां हैं। वे अपने साधकों को क्या राहत दे सकते हैं यह अच्छी तरह समझा जा सकता है।
गणेश की मृत्यु हो गई और फिर उनका जीवन बहाल कर दिया गया – जिसका अर्थ है कि वह फिर से पैदा हुए यानी वह जन्म और मृत्यु के चक्र में है। वह अमर नहीं हैं तो उनके शिष्यों को जन्म और पुनर्जन्म से कैसे छुटकारा दिला सकते हैं। यह बात सभी भक्तों को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए।
इसके अलावा, विडंबना यह है कि गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ मानने वाले भोले भक्त सदियों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं। भक्त ईमानदारी से स्वयं निर्णेय करें कि उनके कितने ’विघ्न’ गणेश द्वारा हल हुए हैं? करोड़ों भक्तों की मनमानी भक्ति प्रथा यहां संदेह पैदा करती है और यह साबित करती है कि उनकी भक्ति-विधि सही नहीं है।
गणेश जी का मूलमंत्र कौन सा है?
आइए, हम आपको बताते हैं कि गणेश जी से लाभ पाने के लिए कौन-सा मंत्र जाप करना चाहिए ?
गणपति बप्पा मोरया’, ‘ओम गम गणपतये नमः’ और ‘जय गणेश देवा’ जैसे भजनों को आमतौर पर गाया जाता है, लेकिन किसी भी धर्म ग्रन्थ में कहीं भी ऐसा करने का कोई सुझाव नहीं दिया गया है। मोर्या एक समर्पित गणेश भक्त का नाम था और भगवान गणेश के प्रति उनकी भक्ति के स्मरण में उनका नाम ‘मोरया’ इस वाक्यांश ‘गणपति बप्पा मोरया’ में लिया जाने लगा।
इस तरह की प्रथाएं व्यर्थ हैं जो आत्माओं को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं कर सकती। इसलिए, इन मनमानी प्रथाओं को तुरंत त्याग देना चाहिए। भक्तों को गणेश जी की सही भक्ति विधि अपनानी चाहिए जिसके करने से गणेश जी भक्तों को लाभ प्रदान करते हैं।
दुनिया के समन्वय में शामिल प्रमुख देवता प्रत्येक मानव शरीर में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं जहां वे ‘चक्रों ’में निवास करते हैं। हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी में सात ‘चक्र’ होते हैं। ‘मूलाधार’ या मूल चक्र से लेकर मस्तिष्क तक जिसको ‘त्रिकुटी’ कहा जाता है। प्रत्येक चक्र एक विशेष देवता के साथ जुड़ा हुआ है। ये चक्र केवल सच्चे मंत्रों का जाप करके ही खिलते हैं जो केवल तत्त्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
आइए, हम अपने शरीर में भगवान गणेश के निवास स्थान को साझा करें। गणेश जी का निवास स्थान मूल चक्र’ है जो कि पहला चक्र है। यह रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित है। यह चार पंखुड़ियों से युक्त होता है और लाल रंग का होता है। इसका 600 बार जाप किया जाता है।
सर्वशक्तिमान कविर्देव इसका वर्णन करते हैं:
मूल चक्र गणेश वासा, रक्त वर्ण जहाँ जानिए।
किलियँ जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये ।
भगवान गणेश का शरीर में निवास स्थान और पूजा करने के सही तरीके को समझने के पश्चात् अब हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि क्या भगवान गणेश पूर्ण भगवान हैं?
पवित्र वेद, भगवद गीता और अन्य धर्मग्रंथों के गहन शोध से इस बात का प्रमाण मिलता है कि पूरा ब्रह्मांड आदि गणेश द्वारा रचित है, जो अमर है? वह पापों का नाश करने वाला है। (प्रमाण- यजुर्वेद अध्याय 8 मन्त्र 13) वह विघ्नों का निवारण करने वाला है। वह सर्वोच्च भगवान है जो पूजा करने के योग्य है। (प्रमाण-यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32)
इससे भक्तों के मन में एक सवाल उठता है कि जब आदि गणेश सर्वशक्तिमान हैं तो लोग देवी-देवताओं की पूजा क्यों करते हैं? क्या आदि गणेश, भगवान गणेश से भिन्न हैं? आइए हम यह समझने की कोशिश करें कि आदि गणेश तथा पूजनीय भगवान कौन है?
क्या भगवान गणेश जी पूर्ण भगवान हैं?
गणेश भगवान शिवलोक में निवास करने वाले गणों के देवता हैं और दैवीय शक्ति के मामले में भगवान शिव के आधीन हैं। भगवान शिव स्वयं स्वीकार करते हैं कि वे जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे हैं, जैसा कि देवी भागवत महापुराण पृष्ठ 123 में उल्लेख किया गया है। इससे साबित होता है कि गणेश भी जन्म लेते हैं और मरते हैं क्योंकि वह शक्ति की दृष्टि से भगवान शिव के अधीन हैं।
गणेश जी को स्वयं मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ है। वह जीवन और मृत्यु के अभिशाप से मुक्त नहीं है। इसलिए, वह अपने किसी भी भक्त को मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते। इसलिए, भगवान गणेश को पूर्ण भगवान के रूप में नहीं गिना जा सकता।
कौन हैं आदि गणेश?
इन देवताओं से पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए, सभी साधकों को पवित्र वेद और पवित्र श्रीमद भगवद गीता को अपनी पूजा का आधार बनाना चाहिए। पुराण, भगवान के शब्द नहीं हैं। वे कुछ देवता / संत / ऋषि के व्यक्तिगत अनुभव हैं। पुराणों को पढ़ने से हम जन्म और मृत्यु के चक्र को तो समझ सकते हैं लेकिन भगवान से सच्चे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने से वंचित रहेंगे। पवित्र वेद और गीता जी भगवान के शब्द हैं।
तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर पवित्र ग्रंथों के अनुसार परम अक्षर ब्रह्म की जो सत्यभक्ति की जाती है उससे आत्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है।
पवित्र वेद, पवित्र गीता जी, पवित्र बाइबिल, पवित्र गुरुग्रंथ साहिब, पवित्र कुरान शरीफ में उल्लेख है कि परम अक्षर पुरुष यानी आदि गणेश विधाता हैं। वे सच्चे आध्यात्मिक गुरु हैं। उनका नाम सर्वशक्तिमान कविर्देव है।
सर्वशक्तिमान कविर्देव एक तत्वदर्शी संत की भूमिका निभाते हुए दिव्य लीला करते हैं और भक्तों को सच्चा ज्ञान, सच्चा मंत्र प्रदान करते हैं जिससे मोक्ष प्राप्त होता है और साधक उस अमरलोक यानी सतलोक में चले जाते हैं जहाँ जाने के बाद वे ब्रह्म-काल के इस मृत संसार में कभी वापस नहीं आते। अतः केवल आदि गणेश ही पूजे जाने योग्य हैं।
भगवान गणेश के गुरु कौन हैं?
सर्वशक्तिमान कबीर जी /आदि गणेश इस मृत दुनिया में सभी युगों में अपनी सबसे प्यारी आत्माओं को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने और उन्हें काल के जाल से मुक्त करने के लिए आते हैं।
आदि गणेश – भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, देवी दुर्गा और ब्रह्म-काल (ज्योति निरंजन) से सतयुग में मिले और उन्हें मंत्र दिए। वह इन सबके गुरु हैं। वह भगवान गणेश जी के गुरु हैं। गणेश जी के विशिष्ट मंत्र का जाप करने से साधकों को लाभ मिलता है, बाकी सभी धार्मिक साधना व्यर्थ है।
आदि गणेश और भगवान गणेश में क्या भिन्नता है?
भगवान गणेश स्वयं जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में हैं और भक्तों को मोक्ष प्रदान करने में असमर्थ हैं। आदि गणेश / सर्वोच्च परमपिता परमेश्वर भगवान कबीर जी ही पूजा करने के योग्य हैं अन्य कोई नहीं। मृत्यु के उपरांत आत्मा को देवताओं के लोक से गुजरना पड़ता है अपना आध्यात्मिक ऋण चुकाने के लिए जो सुख सुविधाएं वे हमें प्रदान करते हैं। उस आध्यात्मिक ऋण को केवल एक सच्चे संत द्वारा दिए गए इन देवताओं के नामों का जाप करके ही चुकाया जा सकता है, वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही वह सच्चे संत हैं।
गीता अध्याय 7 श्लोक 20 में गीता ज्ञानदाता कहता है कि जो अन्य देवताओं की पूजा करते हैं, वे भी अंधकार में हैं। गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में गीता ज्ञानदाता स्वयं की और उसके अधीन सभी 33 करोड़ देवताओं की पूजा ना करने को कह रहा है और केवल उस पूर्णब्रह्म की शरण में जाकर उनकी उपासना करने की सलाह दे रहा है। गीता अध्याय 18 श्लोक 46 में गीता ज्ञानदाता अर्जुन को एक तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने के लिए कह रहा है जो प्रामाणिक आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। वही आदि गणेश हैं।
सभी देवता आदरणीय हैं, लेकिन केवल सर्वशक्तिमान कबीर जी की ही पूजा की जानी चाहिए। उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि भगवान गणेश स्वयं मुक्त नहीं हैं। इसलिए, वह मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते और अपने भक्तों के पापों को नष्ट नहीं कर सकते हैं। जबकि, आदि गणेश पापों का नाश करते हैं और सच्चे उपासक को मोक्ष प्रदान करते हैं। अंतर स्पष्ट है। केवल आदि गणेश ही मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। वह बाधाओं का निवारण करने वाले हैं। अतः पूजनीय केवल परमात्मा आदि गणेश हैं।