धना भक्त का खेत निपाया, माधो दई सिकलात है।
– संत गरीब दास जी
पण्डा पांव बुझाया सतगुरु, जगन्नाथ की बात है
सरलार्थ :- सच्चे मन से साधना करने वाले भक्तों की परमात्मा महिमा बनाता है। वह उनके पूर्व जन्म के संस्कार तथा भक्ति की शक्ति जो संग्रह की होती है। उसके परिणामस्वरूप भक्त में परमेश्वर के प्रति न्यौछावर होने की प्रवृति आम बात की तरह हो जाती है। एक धना नाम का जाट जाति में राजस्थान राज्य में भक्त हुआ है। वह किसान कार्य करता था। अपनी जमीन में खेती करता था। परमात्मा में अटूट श्रद्धा थी। राजस्थान में वर्षा होना किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि उस समय वर्षा के अतिरिक्त सिंचाई का कोई साधन नहीं था। वर्षा के बाद सब किसान अपने-अपने खेतों में ज्वार का बीज बोने के लिए गए। धना भक्त जी भी ज्वार का बीज लेकर अपने खेत में जा रहा था। रास्ते में चार साधु मिले , भक्त ने राम-राम किया तो साधुओं ने कहा भक्त दो दिन से कुछ भी खाने को नहीं मिला है , भूख बहुत लगी है। भक्त ने विचार किया कि बीज नहीं बोया तो बच्चे भूखे मरेंगे। यदि साधुओं को कुछ नहीं खिलाया तो ये चारों भूखे मरेंगे। धना भक्त की पत्नी बहुत सख्त थी। वह किसी को घर पर खाना नहीं खिलाती थी। भक्त धना से भी लड़ाई किया करती थी। धना भक्त ने विचार किया कि यदि मैं ज्वार बौ दूंगा और वर्षा नहीं हुई तो यह बीज वैसे भी व्यर्थ जाएगा। परमात्मा को साक्षी रखकर इन साधुओं की जीवन रक्षा करता हूँ। यह विचार करके ज्वार का बीज अर्थात् साफ-सुथरी ज्वार साधुओं के समक्ष रखकर कहा कि मेरे पास बस ये ज्वार का बीज है , यह खा लो। साधु भूखे थे , सब खा गए और भक्त का धन्यवाद करके चले गए। धना जी ने सोचा कि यदि खेत में कुछ नाटक नहीं किया तो खेत वाले पड़ोसी घरवाली को बताएंगे कि आप ने ज्वार क्यों नहीं बीजी। फिर वह लड़ाई करेगी। इसलिए कुछ कंकर इकट्ठी करके थैले में डालकर खेत में बैलों के साथ जैसे ज्वार का बीज बोते हैं, वैसे अभिनय करके घर आ गया। किसी को पता नहीं चला। परमेश्वर सब देखता है। फिर वर्षा हुई नहीं, सबकी ज्वार समाप्त हो गई। किसी की एक फुट खड़ी थी, किसी की दो फुट। धना भक्त के खेत में मतीरों की बेल उग गई। सारा खेत बेलों से भर गया। मतीरे-तूम्बों की बेल धना जी के खेत में उग गई और मोटे-मोटे तूम्बे लगे। पड़ोसी खेत वालों ने धना भक्त जी की पत्नी से बताया कि आपने ज्वार नहीं बोई थी क्या? सबके खेतों में ज्वार उगी है, आपके खेत में तूम्बों की बेल बेशुमार उगी हैं। भक्तमति ने खेत देखना चाहा, सोचा कि भक्त से फिर लडूंगी, पहले खेत देखकर आती हूँ। धना जी को पता चला कि भाग्यवान को किसी ने बता दिया है और आते ही जमीन-आसमान एक करेगी। धना जी की पत्नी ने अन्य किसानों के खेतों में ज्वार खड़ी देखी और अपने खेत में तूम्बों की बिना बोई खेती। राजस्थान में तुम्बे, बलसुम्बे आदि बिना बोए ही वर्षा होते ही अथाह उग जाते हैं। उसने एक तुम्बा तोड़ा। उसको सिर पर रखकर घर आई और धना भक्त जी से तेज आवाज में बोली कि ज्वार का बीज किसे खिला दिया। सबके खेतों में ज्वार खड़ी है, तेरे खेत में तुम्बे उगे हैं, बच्चे तेरे को खाएंगे क्या? झुंझलाकर तुम्बा हाथों में उठाकर भक्त के सिर में मारने के उद्देश्य से फेंका और बोली देख तेरे कारनामे। भक्त ने सिर बचा लिया , तुम्बा जमीन पर लगकर फूट गया। उसमें 5 कि.ग्रा. ज्वार निकली जैसी बीज बोने के लिए साफ-सुथरी तैयार की जाती है। पहले तो भक्तमति लाल-पीली हो रही थी, जब देखी ज्वार तो पानी-पानी हो गई और ज्वार घर पर रखकर चद्दर और सोटा लेकर खेत में गई। चद्दर बिछाकर लगी तुम्बे फोड़ने, ज्वार का ढेर लग गया। भक्त भी पीछे-पीछे चला गया, सोचा परमात्मा ने दया कर दी, जान बचा दी। सब किसानों की फसल नष्ट हो गई क्योंकि फिर वर्षा नहीं हुई थी। तुम्बों से ज्वार निकल रही है, यह सुनकर पूरा गाँव देखने के लिए पहुँच गया। धना भक्त ने अपने खाने के लिए एक वर्ष की ज्वार रखकर शेष सब गाँव वालों में बाँट दी। उसके पश्चात् भक्तमति भी परमात्मा पर विश्वास करने लगी और भक्ति व सेवा भी करने लगी।
माधो दई सिकलात है का मतलब है कि एक माधो नाम का भक्त वृद्ध था। उसको अतीसार (दस्त) लग गए, बहुत निर्बल हो गया। उठकर बाहर फ्रैश होने भी नहीं जा सका। घर पर ही टट्टी करने लगा। परमात्मा एक शुद्र रूप बनाकर आए और उसका सिकलात अर्थात् पारवाना (टट्टी) उठाकर बाहर डाले। भक्त को स्वस्थ किया। जिस शुद्र का रूप परमात्मा ने बनाया था, स्वस्थ होने के बाद भक्त माधो दास उसको धन्यवाद तथा कुछ मजदूरी के तौर पर अन्न तथा पैसे देने के लिए उसके घर गया तो उस शुद्र ने आश्चर्य किया कि मैं तो आज आया हूँ। मैं अपनी बहन की ससुराल गया था, मैं तो एक महीना वहाँ रहकर आया हूँ, आप क्या कह रहे हो? उस शुद्र के आसपास के व्यक्तियों ने भी यही कहा कि यह तो एक महीने में आज ही लौटा है। भक्त माधो दास को समझते देर नहीं लगी कि वह कौन था। परमेश्वर स्वयं आए थे। भक्त बहुत रोया हे परमेश्वर! मैं कितना मंदभागी कर्महीन हूँ , आपको कष्ट दिया। इस प्रकार परमेश्वर अपने भक्त की सब प्रकार से सहायता करता है।
“जगन्नाथ मंदिर के पांडे के पैर को जलने से बचाया”
एक दिन शाम के समय परमेश्वर कबीर जी अपने साथ संत रविदास जी को लेकर राजा बीरदेव सिंह बघेल के दरबार में गए। उस दिन राजा सिकंदर लोधी भी वहाँ गए हुए थे। सिकंदर लोधी पूरे भारत का शासक था , वह महाराजा था। काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल छोटे राजा थे जो दिल्ली के बादशाह के आधीन होते थे। दोनों संतों को बैठने के लिए आसन दिया गया। कुछ देर दोनों राजाओं के साथ परमात्मा की चर्चा की। फिर अचानक शीघ्रता से कबीर परमेश्वर जी ने अपने लोटे का जल अपने पैर के ऊपर डालना प्रारम्भ कर दिया। सिकंदर ने पूछा प्रभु! यह क्या किया अपने पैर के ऊपर पानी डाला, इसका कारण बताईये। कबीर जी ने कहा कि पुरी में जगन्नाथ के मन्दिर में एक रामसहाय नाम का पाण्डा पुजारी है। वह भगवान का खिचड़ी प्रसाद बना रहा था। उसको उतारने लगा तो अति गर्म खिचड़ी उसके पैर के ऊपर गिर गई। वह चिल्लाकर अचेत हो गया था। यह बर्फ जैसा जल उसके जले हुए पैर पर डाला है , उसके जीवन की रक्षा की है अन्यथा वह मर जाता। जगन्नाथ जी का मंदिर उड़ीसा प्रान्त में पुरी शहर में है जो बनारस से लगभग 1500 कि.मी. है। यह बात राजा सिकंदर तथा बीरदेव सिंह बघेल के गले नहीं उतरी। उसकी जाँच करने के आदेश दे दिए। दो सैनिक ऊँटों (Camels) पर सवार होकर पुरी में गए। 10 दिन जाने में लगे। पुरी में जाकर पूछा कि रामसहाय पाण्डा कौन है? उसको बुलाया गया। सिपाहियों ने पूछा कि क्या आपका पैर खिचड़ी से जला था? उत्तर मिला – हाँ। प्रश्न किया कि किसने ठीक किया? उत्तर मिला कि कबीर जी यहाँ पास ही खड़े थे , उन्होंने करमण्डल से हिमजल डाला था। उससे मेरी जलन बंद हो गई। यदि वे जल नहीं डालते तो मेरी छुट्टी हो गई थी , मैं अचेत हो गया था। प्रश्न-क्या समय था? शाम के समय सूर्य अस्त से लगभग एक घण्टा पहले। अन्य उपस्थित व्यक्तियों ने भी साक्ष्य दिया। सिपाहियों ने कहा सब लिखकर दस्तखत-अंगूठे लगाओ। रामसहाय पाण्डे ने तथा वहाँ के अन्य पुजारियों ने बताया कि कबीर जी तो नित्य-प्रतिदिन मन्दिर में आते हैं। सर्व प्रमाण लेकर-सुनकर दोनों सिपाही वापिस आए और सच्चाई बताई।
दोनों राजा कबीर जी की कुटिया पर गए। दण्डवत प्रणाम किया तथा अपने अविश्वास रूपी अपराध की क्षमा माँगी। बताया कि आप सत्य कह रहे थे। आप जी ने ही जगन्नाथ मंदिर के रामसहाय पाण्डे के पैर को जलने से बचाया था। हमने अपनी तसल्ली के लिए दो सैनिक भेजकर पता कराया है। आप स्वयं वह खुदा हो जो सातवें आसमान पर बैठा है। आप नर रूप धारण करके पृथ्वी पर लीला करने आए हो। परमेश्वर कबीर जी ने कहा महाराज! आपको यहाँ भी गलती लगी है। मैं तो अल्लाहु अकबर हूँ। मैं करोड़ों आसमानों के पार सत्यलोक (सतलोक) में तख्त पर विराजमान हूँ। वहीं मैं आपके सामने खड़ा हूँ। मैं पैगम्बर मुहम्मद को भी मिला था। उन्होंने भी मुझे पहचानने में भूल की थी।