पितृ पक्ष चल रहा है, जिसमें हिंदू धर्म के लोगों के द्वारा पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. इस दौरान पितरों की तिथि के अनुसार उनका तर्पण किया जाता है और उनका मनपसंद खाना भी बनाया जाता है. पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और दान दिया जाता है. इस दौरान लोग पितरों के नाम पर कौओं को भोजन कराते है।
Shraddh 2023 : श्राद्ध की विधि
मूल रूप से श्राद्ध के दिन भूखे रहकर पूर्ण श्रद्धा पूर्वक सात्विक भोजन तैयार करें. गोग्रास, पंच ग्रास आदि अलग रखकर थाली में भोजन परोसकर मृत परिजन की फोटो के सामने परोसें. हाथ जोड़कर उनसे दया दृष्टि करते हुए पधारने और भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना की जाती है।
श्राद्ध कितने दिन का होता है?
पितृ पक्ष में 16 दिनों तक श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। इस दिन पितरों को संतुष्ट करने के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। बताया कि परिवार के एक सदस्य की मौत हो गयी है. मृत्यु के बाद, वे सूक्ष्म जगत में तब तक निवास करते हैं जब तक उन्हें नया जीवन नहीं मिल जाता। क्या श्राद्ध करने से पूर्वजों को और हमें मुक्ति मिलेगी? श्राद्ध निकालने और पितृ पूजने से क्या लाभ और क्या हानियाँ होती हैं?
और हमारे हिंदू धर्म के पवित्र सतग्रंथ श्राद्ध, पिण्डदान, तर्पण के विषय में क्या कहते हैं?
श्राद्ध कितनी पीढ़ी तक किया जाता है?
ब्राह्मणों के अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। ये आत्माएं मृत्यु के बाद 1 से लेकर 100 वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती है। इसीलिए श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों का ही होता है।
Shraddh : पवित्र गीता जी से श्राद्ध व पितर पूजा के विषय में प्रमाण
गीता अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात् भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल(पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात् काल द्वारा निर्मित स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं।
Shraddh 2023 विशेष:- जैसे कोई तहसीलदार की नौकरी(सेवा-पूजा) करता है तो वह तहसीलदार नहीं बन सकता। हाँ उससे प्राप्त धन से रोजी-रोटी चलेगी अर्थात् उसके आधीन ही रहेगा। ठीक इसी प्रकार जो जिस देव (श्री ब्रह्मा देव, श्री विष्णु देव तथा श्री शिव देव अर्थात् त्रिदेव) की पूजा (नौकरी) करता है तो उन्हीं से मिलने वाला लाभ ही प्राप्त करता है। त्रिगुणमई माया अर्थात् तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की पूजा का निषेध पवित्र गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 तक में भी है।
इसी प्रकार कोई पितरों की पूजा (नौकरी-सेवा) करता है तो पितरों के पास छोटा पितर बन कर उन्हीं के पास कष्ट उठाएगा। इसी प्रकार कोई भूतों(प्रेतों) की पूजा (सेवा) करता है तो भूत बनेगा क्योंकि सारा जीवन जिसमें आशक्तता बनी है अन्त में उन्हीं में मन फंसा रहता है। जिस कारण से उन्हीं के पास चला जाता है। कुछेक का कहना है कि पितर-भूत-देव पूजाऐं भी करते रहेंगे, आप से उपदेश लेकर साधना भी करते रहेंगे।
ऐसा नहीं चलेगा। जो साधना पवित्र गीता जी में व पवित्र चारों वेदों में मना है वह करना शास्त्र विरुद्ध हुआ। जिसको पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में मना किया है कि जो शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करते हैं वे न तो सुख को प्राप्त करते हैं न परमगति को तथा न ही कोई कार्य सिद्ध करने वाली सिद्धि को ही प्राप्त करते हैं अर्थात् जीवन व्यर्थ कर जाते हैं। इसलिए अर्जुन तेरे लिए कर्तव्य (जो साधना के कर्म करने योग्य हैं) तथा अकर्तव्य(जो साधना के कर्म नहीं करने योग्य हैं) की व्यवस्था (नियम में) में शास्त्र ही प्रमाण हैं। अन्य साधना वर्जित हैं।
मार्कण्डेय पुराण से प्रमाण
इसी का प्रमाण मार्कण्डे पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237 पर है, जिसमें मार्कण्डे पुराण तथा ब्रह्म पुराणांक इक्ट्ठा ही जिल्द किया है) में भी है कि एक रूची नाम का साधक ब्रह्मचारी रह कर वेदों अनुसार साधना कर रहा था। जब वह 40(चालीस) वर्ष का हुआ तब उस को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। “पितरों ने कहा कि बेटा रूची शादी करवा कर हमारे श्राद्ध निकाल, हम तो दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने कहा पित्रमहो वेद में कर्म काण्ड मार्ग(श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है।
फिर आप मुझे क्यों उस गलत(शास्त्र विधि रहित) साधना पर लगा रहे हो। पितर बोले बेटा यह बात तो तेरी सत है कि वेद में पितर पूजा, भूत पूजा, देवी-देवताओं की पूजा(कर्म काण्ड) को अविद्या ही कहा है इसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है।” इसी उपरोक्त मार्कण्डे पुराण में इसी लेख में पितरों ने कहा कि फिर पितर कुछ तो लाभ देते हैं।
विशेष:- यह अपनी अटकलें पितरों ने लगाई है, वह हमने नहीं पालन करना, क्योंकि पुराणों में आदेश किसी ऋषि विशेष का है जो पितर पूजने, भूत या अन्य देव पूजने को कहा है। परन्तु वेदों में प्रमाण न होने के कारण प्रभु का आदेश नहीं है। इसलिए किसी संत या ऋषि के कहने से प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन करने से सजा के भागी होंगे।
एक समय एक व्यक्ति की दोस्ती एक पुलिस थानेदार से हो गई। उस व्यक्ति ने अपने दोस्त थानेदार से कहा कि मेरा पड़ौसी मुझे बहुत परेशान करता है। थानेदार (Police) ने कहा कि मार लट्ठ, मैं आप निपट लूंगा। थानेदार दोस्त की आज्ञा का पालन करके उस व्यक्ति ने अपने पड़ौसी को लट्ठ मारा, सिर में चोट लगने के कारण पड़ौसी की मृत्यु हो गई। उसी क्षेत्र का अधिकारी होने के कारण वह थाना प्रभारी अपने दोस्त को पकड़ कर लाया, कैद में डाल दिया तथा उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड मिला। उसका दोस्त थानेदार कुछ मदद नहीं कर सका।
क्योंकि राजा का संविधान है कि यदि कोई किसी की हत्या करेगा तो उसे मृत्यु दण्ड प्राप्त होगा। उस नादान व्यक्ति ने अपने दोस्त दरोगा की आज्ञा मान कर राजा का संविधान भंग कर दिया। जिससे जीवन से हाथ धो बैठा। ठीक इसी प्रकार पवित्र गीता जी व पवित्र वेद यह प्रभु का संविधान है। जिसमें केवल एक पूर्ण परमात्मा की पूजा का ही विधान है, अन्य देवताओं – पितरों – भूतों की पूजा करना मना है। पुराणों में ऋषियों (थानेदारों) का आदेश है। जिनकी आज्ञा पालन करने से प्रभु का संविधान भंग होने के कारण कष्ट पर कष्ट उठाना पड़ेगा। इसलिए आन उपासना पूर्ण मोक्ष में बाधक है।