Who is Nanak Saheb Ji’s Guru? गुरुनानक देव जी के गुरु कौन थे?

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पवित्र सिक्ख समाज

इस बात से सहमत नहीं है कि श्री नानक साहेब जी के गुरु जी काशी वाला धाणक (जुलाहा) कबीर साहेब जी थे। इसके विपरीत श्री नानक साहेब जी को पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब जी  (Kabir Saheb Ji) का गुरु जी कहा है। परन्तु श्री नानक साहेब जी  (nanak saheb ji)के पूज्य गुरु जी का नाम क्या है? इस विषय में पवित्र सिक्ख समाज मौन है, जबकि स्वयं श्री गुरु नानक साहेब जी श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी में महला 1 की अमृतवाणी में स्वयं स्वीकार करते हैं कि मुझे गुरु जी जिंदा रूप में आकार में मिले। वही धाणक (जुलाहा) रूप में सत् कबीर (हक्का कबीर) नाम से पृथ्वी पर भी थे तथा ऊपर अपने सच्चखण्ड में भी वही विराजमान है जिन्होंने मुझे अमृत नाम प्रदान किया।

 

आदरणीय श्री नानक साहेब जी का आविर्भाव सन् 1469 तथा सतलोक वास सन् 1539 ‘‘पवित्र पुस्तक जीवनी दस गुरु साहिबान‘‘। आदरणीय कबीर साहेब जी धाणक रूप में मृतमण्डल में सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए तथा सशरीर सतलोक गमन सन् 1518 में ‘‘पवित्र कबीर सागर‘‘। दोनों महापुरुष 49 वर्ष तक समकालीन रहे। श्री गुरु नानक साहेब जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ। प्रभु प्राप्ति के बाद कहा कि ‘‘न कोई हिन्दू न मुसलमाना‘‘ अर्थात् अज्ञानतावश दो धर्म बना बैठे। सर्व एक परमात्मा सतपुरुष के बच्चे हैं।

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Did Guru Nanak Saheb ji Create any Religion?

श्री नानक देव जी ने कोई धर्म नहीं बनाया, बल्कि धर्म की बनावटी जंजीरों से मानव को मुक्त किया तथा शिष्य परम्परा चलाई। जैसे गुरुदेव से नाम दीक्षा लेने वाले भक्तों को शिष्य बोला जाता है, उन्हें पंजाबी भाषा में सिक्ख कहने लगे। जैसे आज इस दास के लाखों शिष्य हैं, परन्तु यह धर्म नहीं है। सर्व पवित्रा धर्मों की पुण्यात्माऐं आत्म कल्याण करवा रही हैं। यदि आने वाले समय में कोई धर्म बना बैठे तो वह दुर्भाग्य ही होगा। भेदभाव तथा संघर्ष की नई दीवार ही बनेगी, परन्तु लाभ कुछ नहीं होगा।

विशेष:- केवल एक ही बात को ‘‘कि कौन किसका गुरु तथा कौन किसका शिष्य है‘‘ वाद-विवाद का विषय न बना कर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। कुछ देर के लिए Shri Nanak Saheb जी को परमात्मा कबीर साहेब (Kavirdev) जी का गुरु जी मान लें। यह विचार करें कि इन महापुरुषों ने गुरु-शिष्य की भूमिका करके हमें कितनी अनमोल वाणी रच कर दी हैं तथा हम कितना उनका अनुशरण कर पा रहे हैं।
आज किसी व्यक्ति का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में है, वह अपनी साधना तथा ईष्ट को सर्वोच्च मान रहा है। मृत्यु उपरान्त उसी पुण्यात्मा का जन्म पवित्र सिक्ख धर्म में हुआ तो फिर वह उसी साधना को उत्तम मान कर निश्चिंत हो जाएगा, फिर पवित्र मुसलमान धर्म में जन्म मिला तो उपरोक्त साधनाओं के विपरीत पूजा पर आरूढ़ होगा तथा फिर पवित्र ईसाई धर्म में जन्म हुआ तो केवल उसी पूजा पर आधारित हो जाएगा।

फिर कभी पवित्र आर्य समाज में वही पुण्यात्मा जन्म लेगी तो केवल हवन यज्ञ करने को ही मुक्ति मार्ग कहेगा। यदि वही पुण्यात्मा पवित्र जैन धर्म में पहुँचेगी तो हो सकता है निवस्त्र रह कर या मुख पर कपड़ा बांध कर नंगे पैरों चलना ही मुक्ति का अन्तिम साधन होगा। उपरोक्त जन्म पूर्ण परमात्मा की भक्ति न मिलने तक होते रहेंगे, क्योंकि द्वापर युग तक अपने पूर्वज एक ही थे तथा वेदों अनुसार पूजा करते थे, अन्य धर्मों की स्थापना नहीं हुई थी। जब श्री गुरु गोबिन्द साहेब जी ने पाँच प्यारों को चुना उनमें से

1. श्री दयाराम जी लाहौर के खत्री परिवार से हिन्दू थे।
2. श्री धर्मदास जी इन्द्रप्रस्थ(Delhi) के जाट(Hindu) थे।
3. भाई मुहकम चन्द जी ‘छीबे‘ हिन्दू द्वारका वासी
4. भाई साहिब चन्द जी ‘नाई‘ हिन्दू बीदर निवासी
5. भाई हिम्मतमल जी ‘झींवर‘ हिन्दू जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा) निवासी थे (‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ लेखक सोढ़ी तेजा सिंह, प्रकाशक भाई चतर सिंघ, जीवन सिंघ अमृतसर, पृष्ठ नं. 343-344)।

इसलिए अपने संस्कार मिले-जुले हैं। भले ही उपरोक्त पंच प्यारे उस समय अपनी भक्ति साधना गुरूग्रन्थ साहेब के अनुसार गुरूओं की आज्ञा अनुसार कर रहे थे परन्तु सर्व हिन्दू समाज से सम्बन्ध रखते थे। उस समय गुरूओं के अनुयाईयों को सिक्ख कहते थे। हिन्दी भाषा में शिष्य कहते हैं। इस कारण से एक अलग भक्ति मार्ग पर चलने वाले जन समूह को सिक्ख कहने लगे। अब यह एक अलग धर्म का रूप धारण कर गया है। जैसे वर्तमान में कई पंथों के लाखों अनुयाई हैं। उनको भी अन्य नामों से सम्बोधित किया जाता है। जैसे राधास्वामी पंथ के अनुयाईयों को कहते हैं ये तो राधास्वामी हैं। परन्तु ये सर्व धर्मों के व्यक्त्यिों का समूह है। हो सकता है आने वाले समय में यह एक अलग धर्म का रूप धारण करले परन्तु वर्तमान में अधिकतर हिन्दू समाज और सिक्ख समाज के व्यक्ति हैं।

Guru Nanak Dev ji – मांसाहार निषेध 

जो व्यक्ति मांस आहार, मदिरापान तथा अन्य नशीली वस्तु जैसे तम्बाकु (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि में) सेवन करता है तथा लूट-खसौट, जीव हिंसा करता है तथा बहन-बेटियों को बुरी नजर से देखता है वह न तो हिन्दू है – न मुसलमान – न सिक्ख – न ईसाई। क्या उपरोक्त बुराई करने का सर्व पवित्र धर्मों के सद्ग्रन्थों में विवरण है? नहीं। उपरोक्त बुराई युक्त व्यक्ति कभी प्रभु प्राप्ति नहीं कर सकता तथा न ही वह धार्मिक हो सकता।
एक समय यह दास एक दोस्त सिक्ख अधिकारी के साथ किसी सिक्ख की शादी में गया। वहाँ पर श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के अखण्ड पाठ का भोग पड़ा। सर्व उपस्थित व्यक्तियों ने प्रसाद लिया। फिर खाना खाने के लिए साथ में ही लगे टैंट में प्रवेश हुए। जहाँ पवित्र अमृतवाणी का भोग पड़ा था तथा जहाँ खाना खाया, दोनों के बीच केवल कनात(कपड़ा) लगी थी। खाने को मांस तथा पीने को मदिरा सरे आम थी। जो पाठ कर रहे थे वे भी सर्व प्रथम उसी आहार को प्रेम पूर्वक कर रहे थे। इसलिए सर्व प्रथम हिन्दू तो हिन्दू बनें, मुसलमान बनें मुसलमान, ईसाई बनें ईसाई तथा सिक्ख बनें सिक्ख। फिर हम प्रभु भक्ति करने योग्य होंगे। प्रभु साधना भी अपने सद्ग्रन्थों में वर्णित विधि अनुसार करने से प्रभु प्राप्ति होगी अन्यथा मानव शरीर व्यर्थ हो जाएगा।

Who is Kul Ka Maalik?

हम एक कुल मालिक की संतान हैं, जिन का नाम कबीर परमेश्वर है, सत्ज्ञान न होने से हिन्दू-मुसलमान के झगड़े, हिन्दू-सिक्ख के झगड़े, मुसलमान-ईसाई के झगड़े धर्म के श्रेष्ठता और अश्रेष्ठता के कारण हैं। विश्व युद्ध में भी इतना रक्तपात नहीं हुआ होगा, जितना धर्म के खतरे की आड़ में हो चुका है। धार्मिकता के खतरे की तरफ ध्यान न देने से अनेक बुराईयां सर्व पवित्र धर्मों में घर कर चुकी हैं। सर्व पवित्र धर्मों में एक प्रतिशत व्यक्ति होते हैं जो 99 प्रतिशत को आपस में लड़वा कर मरवा देते हैं। इसके विपरीत हिन्दू-हिन्दू को मार रहा है, सिक्ख-सिक्ख को काट रहा है, मुसलमान – मुसलमान को परेशान कर रहा है, ईसाई – ईसाई का दुश्मन बना हुआ है, आर्य समाजी – आर्य समाजी पर ही मुकद्मे किए बैठा है, कबीर पंथी – कबीर पंथियों के दुश्मन बने हैं तथा अन्य आश्रमों तथा डेरों के महन्तों व सन्तों के आपस में कत्ले आम तथा मुकद्में तत्त्वज्ञान के अभाव के कारण ही हो रहे हैं।

जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई।

आर्य, जैनी और बिश्नोई, एक प्रभु के बच्चे सोई।।


कबीरा खड़ा बाजार में, सब की माँगे खैर। ना काहूँ से दोस्ती, ना काहूँ से बैर।।

conclusion:

मुझ दास (sant rampal ji maharaj) का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ तथा वर्तमान में जो भी पूजाऐं उपलब्ध थी सभी कर रहा था। 17 फरवरी 1988 (फाल्गुन मास की अमावस्या विक्रमी संवत् 2045) को तत्त्वदर्शी संत परम पूज्य स्वामी रामदेवानन्द जी महाराज के दर्शन हुए। उन्होंने जब मुझे यह शास्त्र आधारित तत्त्वज्ञान सुनाया, प्रथम बार ऐसा लगा जैसे किसी नास्तिक से मिलन हो गया हो और मन में आया कि ऐसे व्यक्ति के तो दर्शन भी व्यर्थ होते हैं जो हमारे देवी-देवताओं, ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा ब्रह्म से भी ऊपर कोई शक्ति बता रहा है। जब इस दास ने महाराज जी के द्वारा बताए शास्त्रों का अध्ययन उनकी पोल खोलने के लिए किया तो मेरी ही पोल खुल गई कि मैं सर्व साधना अपने ही पवित्र शास्त्रों (पवित्र गीता जी व पवित्र वेदों) के विरूद्ध ही कर रहा था। अब दास की प्रार्थना है कि सर्व भक्तजनों को एक बार अवश्य खेद होगा, परन्तु उपरोक्त सद्ग्रन्थों को प्रभु को साक्षी रख कर पुनः पढें तथा मुझ दास के पास सर्व पवित्र धर्मों के सदग्रन्थों के आधार पर वास्तविक भक्ति मार्ग है। निःशुल्क उपदेश प्राप्त करके अपना तथा अपने प्यारे परिवार का कल्याण करवायें।

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